https://quranenc.com/ar/browse/hindi_omari/16
ترجمة معاني سورة:
النحل
آية:
سورة النحل - सूरा अन्-नह़्ल
أَتَىٰٓ أَمۡرُ ٱللَّهِ فَلَا تَسۡتَعۡجِلُوهُۚ
سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ
अल्लाह का आदेश आ गया है। अतः
(हे काफ़िरो!) उसके शीघ्र आने की माँग न करो। वह (अल्लाह) पवित्र तथा उस
शिर्क (मिश्रणवाद) से ऊँचा है, जो वे कर रहे हैं।
التفاسير العربية:
يُنَزِّلُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةَ بِٱلرُّوحِ مِنۡ
أَمۡرِهِۦ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦٓ أَنۡ أَنذِرُوٓاْ أَنَّهُۥ
لَآ إِلَٰهَ إِلَّآ أَنَا۠ فَٱتَّقُونِ
वह फ़रिश्तों को वह़्यी के साथ,
अपने आदेश से, अपने जिस भक्त पर चाहता है, उतारता है कि (लोगों को) सावधान
करो कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है, अतः मुझसे ही डरो।
التفاسير العربية:
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۚ تَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ
उसने आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति सत्य के साथ की है, वह उनके शिर्क से बहुत ऊँचा है।
التفاسير العربية:
خَلَقَ ٱلۡإِنسَٰنَ مِن نُّطۡفَةٖ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٞ مُّبِينٞ
उसने मनुष्य की उत्पत्ति वीर्य से की है, फिर वह अकस्मात् खुला झगड़ालू बन गया।
التفاسير العربية:
وَٱلۡأَنۡعَٰمَ خَلَقَهَاۖ لَكُمۡ فِيهَا دِفۡءٞ وَمَنَٰفِعُ وَمِنۡهَا تَأۡكُلُونَ
तथा चौपायों की उत्पत्ति की, जिनमें तुम्हारे लिए गर्मी[1] और बहुत-से लाभ हैं और उनमें से कुछको खाते हो।
1. अर्थात उन की ऊन तथा खाल से गर्म वस्त्र बनाते हो।
التفاسير العربية:
وَلَكُمۡ فِيهَا جَمَالٌ حِينَ تُرِيحُونَ وَحِينَ تَسۡرَحُونَ
तथा उनमें तुम्हारे लिए एक शोभा है, जिस समय संध्या को चराकर लाते हो और जब प्रातः चराने ले जाते हो।
التفاسير العربية:
وَتَحۡمِلُ أَثۡقَالَكُمۡ إِلَىٰ بَلَدٖ لَّمۡ
تَكُونُواْ بَٰلِغِيهِ إِلَّا بِشِقِّ ٱلۡأَنفُسِۚ إِنَّ رَبَّكُمۡ
لَرَءُوفٞ رَّحِيمٞ
और वे तुम्हारे बोझ, उन नगरों
तक लादकर ले जाते हैं, जिनतक तुम बिना कड़े परिश्रम के नहीं पहुँच सकते।
वास्तव में, तुम्हारा पालनहार अति करुणामय, दयावान् है।
التفاسير العربية:
وَٱلۡخَيۡلَ وَٱلۡبِغَالَ وَٱلۡحَمِيرَ
لِتَرۡكَبُوهَا وَزِينَةٗۚ وَيَخۡلُقُ مَا لَا تَعۡلَمُونَ
तथा घोड़े, खच्चर और गधे पैदा
किये, ताकि उनपर सवारी करो और (वे) शोभा (बनें) और (अल्लाह) ऐसी चीज़ों की
उत्पत्ति करेगा, जिन्हें (अभी) तुम नहीं जानते हो[1]।
1. अर्थात सवारी के साधन इत्यादि। और आज हम उन में
से बहुत सी चीज़ों को अपनी आँखों से देख रहे हैं, जिन की ओर अल्लाह ने आज
से चौदह सौ वर्ष पहले इस आयत के अन्दर संकेत किया था। जैसे कार, रेल और
विमान आदि।
التفاسير العربية:
وَعَلَى ٱللَّهِ قَصۡدُ ٱلسَّبِيلِ وَمِنۡهَا
جَآئِرٞۚ وَلَوۡ شَآءَ لَهَدَىٰكُمۡ أَجۡمَعِينَ
और अल्लाह पर, सीधी राह बताना है और उनमें से कुछ[1] टेढ़े हैं तथा यदि अल्लाह चाहता, तो तुमसभी को सीधी राह दिखा देता।
1. अर्थात जो इस्लाम के विरुध्द हैं।
التفاسير العربية:
هُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗۖ
لَّكُم مِّنۡهُ شَرَابٞ وَمِنۡهُ شَجَرٞ فِيهِ تُسِيمُونَ
वही है, जिसने आकाश से जल बरसाया, जिसमें से कुछ तुम पीते हो तथा कुछसे वृक्ष उपजते हैं, जिसमें तुम (पशुओं को) चराते हो।
التفاسير العربية:
يُنۢبِتُ لَكُم بِهِ ٱلزَّرۡعَ وَٱلزَّيۡتُونَ
وَٱلنَّخِيلَ وَٱلۡأَعۡنَٰبَ وَمِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ
لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ
और तुम्हारे लिए उससे खेती
उपजाता है और ज़ैतून, खजूर, अंगूर और प्रत्येक प्रकार के फल। वास्तव में
इस, में एक बड़ी निशानी है, उन लोगों के लिए, जो सोच-विचार करते हैं।
التفاسير العربية:
وَسَخَّرَ لَكُمُ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ
وَٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ وَٱلنُّجُومُ مُسَخَّرَٰتُۢ بِأَمۡرِهِۦٓۚ إِنَّ
فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ
और उसने तुम्हारे लिए रात्रि
तथा दिवस को सेवा में लगा रखा है तथा सूर्य और चाँद को और (हाँ!) सितारे
उसके आदेश के अधीन हैं। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ (लक्षण) हैं, उन
लोगों के लिए, जो समझ-बूझ रखते हैं।
التفاسير العربية:
وَمَا ذَرَأَ لَكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُخۡتَلِفًا
أَلۡوَٰنُهُۥٓۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَذَّكَّرُونَ
तथा जो तुम्हारे लिए धरती में
विभिन्न रंगों की चीजें उत्पन्न की हैं, वास्तव में, इसमें एक बड़ी निशानी
लक्षण) है, उन लोगों के लिए, जो शिक्षा ग्रहण करते हैं।
التفاسير العربية:
وَهُوَ ٱلَّذِي سَخَّرَ ٱلۡبَحۡرَ لِتَأۡكُلُواْ
مِنۡهُ لَحۡمٗا طَرِيّٗا وَتَسۡتَخۡرِجُواْ مِنۡهُ حِلۡيَةٗ
تَلۡبَسُونَهَاۖ وَتَرَى ٱلۡفُلۡكَ مَوَاخِرَ فِيهِ وَلِتَبۡتَغُواْ مِن
فَضۡلِهِۦ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
और वही है, जिसने सागर को वश
में कर रखा है, ताकि तुम उससे ताज़ा[1] मांस खाओ और उससे अलंकार[2] निकालो,
जिसे पहनते हो तथा तुम नौकाओं को देखते हो कि सागर में (जल को) फाड़ती हुई
चलती हैं और इसलिए ताकि तुम उस अल्लाह के अनुग्रह[3] की खोज करो और ताकि
कृतज्ञ बनो।
1. अर्थात मछलियाँ। 2. अलंकार अर्थात मोती और
मूँगा निकालो। 3. अर्थात सागरों में व्यापारिक यात्रा कर के अपनी जीविका की
खोज करो।
التفاسير العربية:
وَأَلۡقَىٰ فِي ٱلۡأَرۡضِ رَوَٰسِيَ أَن تَمِيدَ
بِكُمۡ وَأَنۡهَٰرٗا وَسُبُلٗا لَّعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ
और उसने धरती में पर्वत गाड़ दिये, ताकि तुम्हें लेकर डोलने न लगे तथा नदियाँ और राहें, ताकि तुम राह पाओ।
التفاسير العربية:
وَعَلَٰمَٰتٖۚ وَبِٱلنَّجۡمِ هُمۡ يَهۡتَدُونَ
तथा बहुत-से चिन्ह (बना दिये) और वे सितारों से (भी) राह[1] पाते हैं।
1. अर्थात रात्रि में।
التفاسير العربية:
أَفَمَن يَخۡلُقُ كَمَن لَّا يَخۡلُقُۚ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ
तो क्या, जो उत्पत्ति करता है, उसके समान है, जो उत्पत्ति नहीं करता? क्या तुम शिक्षा ग्रहण नहीं करते[1]?
1. और उस की उत्पत्ति को उस का साझी और पूज्य बनाते हो।
التفاسير العربية:
وَإِن تَعُدُّواْ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ لَا تُحۡصُوهَآۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَغَفُورٞ رَّحِيمٞ
और यदि तुम अल्लाह के पुरस्कारों की गणना करना चाहो, तो कभी नहीं कर सकते। वास्तव में, अल्लाह बड़ा क्षमा तथा दया करने वाला है।
التفاسير العربية:
وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعۡلِنُونَ
तथा अल्लाह जानता है, जो तुम छुपाते हो और जो तुम व्यक्त करते हो।
التفاسير العربية:
وَٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ لَا يَخۡلُقُونَ شَيۡـٔٗا وَهُمۡ يُخۡلَقُونَ
और जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वे किसी चीज़ की उत्पत्ति नहीं कर सकते। जबकि वे स्वयं उत्पन्न किये जाते हैं।
التفاسير العربية:
أَمۡوَٰتٌ غَيۡرُ أَحۡيَآءٖۖ وَمَا يَشۡعُرُونَ أَيَّانَ يُبۡعَثُونَ
वे निर्जीव प्राणहीन हैं और (ये भी) नहीं जानते कि कब पुनः जीवित किये जायेंगे।
التفاسير العربية:
إِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۚ فَٱلَّذِينَ لَا
يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ قُلُوبُهُم مُّنكِرَةٞ وَهُم مُّسۡتَكۡبِرُونَ
तुम्हारा पूज्य बस एक है, फिर जो लोग परलोक पर ईमान नहीं लाते, उनके दिल निवर्ती (विरोधी) हैं और वे अभिमानी हैं।
التفاسير العربية:
لَا جَرَمَ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا يُسِرُّونَ
وَمَا يُعۡلِنُونَۚ إِنَّهُۥ لَا يُحِبُّ ٱلۡمُسۡتَكۡبِرِينَ
जो कुछ वे छुपाते तथा व्यक्त करते हैं, निश्चय अल्लाह उसे जानता है। वास्तव में, वह अभिमानियों से प्रेम नहीं करता।
التفاسير العربية:
وَإِذَا قِيلَ لَهُم مَّاذَآ أَنزَلَ رَبُّكُمۡ قَالُوٓاْ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ
और जब उनसे पूछा जाये कि तुम्हारे पालनहार ने क्या उतारा है[1]? तो कहते हैं कि पूर्वजों की कल्पित कथाएँ हैं।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर।
तो यह जानते हुये कि अल्लाह ने क़ुर्आन उतारा है, झूठ बोलते हैं और स्वयं
को तथा दूसरों को धोखा देते हैं।
التفاسير العربية:
لِيَحۡمِلُوٓاْ أَوۡزَارَهُمۡ كَامِلَةٗ يَوۡمَ
ٱلۡقِيَٰمَةِ وَمِنۡ أَوۡزَارِ ٱلَّذِينَ يُضِلُّونَهُم بِغَيۡرِ عِلۡمٍۗ
أَلَا سَآءَ مَا يَزِرُونَ
ताकि वे अपने (पापों का) पूरा
बोझ प्रलय के दिन उठायें तथा कुछ उन लोगों का बोझ (भी), जिन्हें बिना ज्ञान
के कुपथ कर रहे थे, सावधान! वे कितना बुरा बोझ उठायेंगे!
التفاسير العربية:
قَدۡ مَكَرَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَأَتَى
ٱللَّهُ بُنۡيَٰنَهُم مِّنَ ٱلۡقَوَاعِدِ فَخَرَّ عَلَيۡهِمُ ٱلسَّقۡفُ مِن
فَوۡقِهِمۡ وَأَتَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَيۡثُ لَا يَشۡعُرُونَ
इनसे पहले के लोग भी षड्यंत्र
रचते रहे, तो अल्लाह ने उनके षड्यंत्र के भवन का उनमूलन कर दिया, फिर ऊपर
से उनपर छत गिर पड़ी और उनपर ऐसी दिशा से यातना आ गई, जिसे वे सोच भी नहीं
रहे थे।
التفاسير العربية:
ثُمَّ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ يُخۡزِيهِمۡ وَيَقُولُ
أَيۡنَ شُرَكَآءِيَ ٱلَّذِينَ كُنتُمۡ تُشَـٰٓقُّونَ فِيهِمۡۚ قَالَ
ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ إِنَّ ٱلۡخِزۡيَ ٱلۡيَوۡمَ وَٱلسُّوٓءَ عَلَى
ٱلۡكَٰفِرِينَ
फिर प्रलय के दिन उन्हें
अपमानित करेगा और कहेगा कि मेरे वह साझी कहाँ हैं, जिनके लिए तुम झगड़ रहे
थे? वे कहेंगेः जिन्हें ज्ञान दिया गया है कि वास्तव में, आज अपमान तथा
बुराई (यातना) काफ़िरों के लिए है।
التفاسير العربية:
ٱلَّذِينَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ
ظَالِمِيٓ أَنفُسِهِمۡۖ فَأَلۡقَوُاْ ٱلسَّلَمَ مَا كُنَّا نَعۡمَلُ مِن
سُوٓءِۭۚ بَلَىٰٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ
जिनके प्राण फ़रिश्ते निकालते
हैं, इस दशा में कि वे अपने ऊपर अत्याचार करने वाले हैं, तो वे आज्ञाकारी
बन जाते[1] हैं, (कहते हैं कि) हम कोई बुराई (शिर्क) नहीं कर रहे थे। क्यों
नहीं? वास्तव में, अल्लाह तुम्हारे कर्मों से भली-भाँति अवगत है।
1. अर्थात मरण का समय अल्लाह को मान लेते हैं।
التفاسير العربية:
فَٱدۡخُلُوٓاْ أَبۡوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ
فِيهَاۖ فَلَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِينَ
तो नरक के द्वारों में प्रवेश कर जाओ, उसमें सदावासी रहोगे, अतः क्या ही बुरा है अभिमानों का निवास स्थान!
التفاسير العربية:
۞وَقِيلَ لِلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ مَاذَآ أَنزَلَ
رَبُّكُمۡۚ قَالُواْ خَيۡرٗاۗ لِّلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ فِي هَٰذِهِ
ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٞۚ وَلَدَارُ ٱلۡأٓخِرَةِ خَيۡرٞۚ وَلَنِعۡمَ دَارُ
ٱلۡمُتَّقِينَ
और उनसे पूछा गया, जो अपने
पालनहार से डरे कि तुम्हारे पालनहार ने क्या उतारा है? तो उन्होंने कहाः
अच्छी चीज़ उतारी है। उनके लिए जिन्होंने इस लोक में सदाचार किये, बड़ी
भलाई है और वास्तव में, परलोक का घर (स्वर्ग) अति उत्तम है और आज्ञाकारियों
का आवास कितना अच्छा है!
التفاسير العربية:
جَنَّـٰتُ عَدۡنٖ يَدۡخُلُونَهَا تَجۡرِي مِن
تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ لَهُمۡ فِيهَا مَا يَشَآءُونَۚ كَذَٰلِكَ يَجۡزِي
ٱللَّهُ ٱلۡمُتَّقِينَ
सदा रहने के स्वर्ग जिसमें
प्रवेश करेंगे, जिनमें नहरें बहती होंगी, उनके लिए उसमें जो चाहेंगे
(मिलेगा)। इसी प्रकार, अल्लाह आज्ञाकारियों को प्रतिफल (बदला) देता है।
التفاسير العربية:
ٱلَّذِينَ تَتَوَفَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ
طَيِّبِينَ يَقُولُونَ سَلَٰمٌ عَلَيۡكُمُ ٱدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ بِمَا
كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ
जिनके प्राण फ़रिश्ते इस दशा
में निकालते हैं कि वे स्वच्छ-पवित्र हैं, तो कहते हैं: "तुमपर शान्ति हो।"
तुम अपने सुकर्मों के बदले स्वर्ग में प्रवेश कर जाओ।
التفاسير العربية:
هَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّآ أَن تَأۡتِيَهُمُ
ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ أَوۡ يَأۡتِيَ أَمۡرُ رَبِّكَۚ كَذَٰلِكَ فَعَلَ
ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ وَمَا ظَلَمَهُمُ ٱللَّهُ وَلَٰكِن كَانُوٓاْ
أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ
क्या वे इसकी प्रतीक्षा कर रहे
हैं कि उनके पास फ़रिश्ते[1] आ जायें अथवा आपके पालनहार का आदेश[2] आ
पहुँचे? ऐसे ही, उनसे पूर्व के लोगों ने किया और अल्लाह ने उनपर अत्याचार
नहीं किया, परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे थे।
1. अर्थात प्राण निकालने के लिये। 2. अर्थात अल्लाह की यातना या प्रलय।
التفاسير العربية:
فَأَصَابَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا عَمِلُواْ وَحَاقَ
بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ
तो उनके कुकर्मों की बुराईयाँ[1] उनपर आ पड़ीं और उन्हें उसी (यातना) ने घेर लिया, जिसका वे परिहास कर रहे थे।
1. अर्थात दुष्परिणाम।
التفاسير العربية:
وَقَالَ ٱلَّذِينَ أَشۡرَكُواْ لَوۡ شَآءَ
ٱللَّهُ مَا عَبَدۡنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَيۡءٖ نَّحۡنُ وَلَآ
ءَابَآؤُنَا وَلَا حَرَّمۡنَا مِن دُونِهِۦ مِن شَيۡءٖۚ كَذَٰلِكَ فَعَلَ
ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ فَهَلۡ عَلَى ٱلرُّسُلِ إِلَّا ٱلۡبَلَٰغُ
ٱلۡمُبِينُ
और कहा, जिन लोगों ने शिर्क
(मिश्रणवाद) कियाः यदि अल्लाह चाहता, तो हम उसके सिवा किसी चीज़ की इबादत
(वंदना) न करते, न हम और न हमारे बाप-दादा और न उसके आदेश के बिना किसी
चीज़ को ह़राम (वर्जित) करते। ऐसे ही, इनसे पूर्व वाले लोगों ने किया। तो
रसूलों पर केवल खुले रूप से उपदेश पहुँचा देना है।
التفاسير العربية:
وَلَقَدۡ بَعَثۡنَا فِي كُلِّ أُمَّةٖ رَّسُولًا
أَنِ ٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ وَٱجۡتَنِبُواْ ٱلطَّـٰغُوتَۖ فَمِنۡهُم مَّنۡ
هَدَى ٱللَّهُ وَمِنۡهُم مَّنۡ حَقَّتۡ عَلَيۡهِ ٱلضَّلَٰلَةُۚ فَسِيرُواْ
فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِينَ
और हमने प्रत्येक समुदाय में एक
रसूल भेजा कि अल्लाह की इबादत (वंदना) करो और ताग़ूत (असुर- अल्लाह के
सिवा पूज्यों) से बचो, तो उनमें से कुछ को, अल्लाह ने सुपथ दिखा दिया और
कुछ पर कुपथ सिध्द हो गया। तो धरती में चलो-फिरो, फिर देखो कि झुठलाने
वालों का अन्त कैसा रहा?
التفاسير العربية:
إِن تَحۡرِصۡ عَلَىٰ هُدَىٰهُمۡ فَإِنَّ ٱللَّهَ
لَا يَهۡدِي مَن يُضِلُّۖ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ
(हे नबी!) आप ऐसे लोगों को सुपथ
दिखाने पर लोलुप हों, तो भी अल्लाह उसे सुपथ नहीं दिखायेगा, जिसे कुपथ कर
दे और न उनका कोई सहायक होगा।
التفاسير العربية:
وَأَقۡسَمُواْ بِٱللَّهِ جَهۡدَ أَيۡمَٰنِهِمۡ لَا
يَبۡعَثُ ٱللَّهُ مَن يَمُوتُۚ بَلَىٰ وَعۡدًا عَلَيۡهِ حَقّٗا وَلَٰكِنَّ
أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعۡلَمُونَ
और उन (काफ़िरों) ने अल्लाह की
भरपूर शपथ ली कि अल्लाह उसे पुनः जीवित नहीं करेगा, जो मर जाता है। क्यों
नहीं? ये तो अल्लाह का अपने ऊपर सत्य वचन है, परन्तु अधिक्तर लोग नहीं
जानते।
التفاسير العربية:
لِيُبَيِّنَ لَهُمُ ٱلَّذِي يَخۡتَلِفُونَ فِيهِ
وَلِيَعۡلَمَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّهُمۡ كَانُواْ كَٰذِبِينَ
(ऐसा करना इसलिए आवश्यक है)
ताकि अल्लाह उस तथ्य को उजागर कर दे, जिसमें[1] वे विभेद कर रहे थे और ताकि
काफ़िर जान लें कि वही झूठे थे।
1. अर्थात पुनरोज्जीन आदि के विषय में।
التفاسير العربية:
إِنَّمَا قَوۡلُنَا لِشَيۡءٍ إِذَآ أَرَدۡنَٰهُ أَن نَّقُولَ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ
हमारा कथन, जब हम किसी चीज़ को
अस्तित्व प्रदान करने का निश्चय करें, तो इसके सिवा कुछ नहीं होता कि उसे
आदेश दें कि "हो जा" और वह हो जाती है।
التفاسير العربية:
وَٱلَّذِينَ هَاجَرُواْ فِي ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ
مَا ظُلِمُواْ لَنُبَوِّئَنَّهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٗۖ وَلَأَجۡرُ
ٱلۡأٓخِرَةِ أَكۡبَرُۚ لَوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ
तथा जो लोग अल्लाह के लिए हिजरत
(प्रस्थान) कर गये, अत्याचार सहने के पश्चात्, तो हम उन्हें संसार में
अच्छा निवास्-स्थान देंगे और परलोक का प्रतिफल तो बहुत बड़ा है, यदि वे[1]
जानते।
1. इन से अभिप्रेत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
के वह अनुयायी हैं, जिन को मक्का के मुश्रिकों ने अत्याचार कर के निकाल
दिया। और ह़ब्शा और फिर मदीना हिजरत कर गये।
التفاسير العربية:
ٱلَّذِينَ صَبَرُواْ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ يَتَوَكَّلُونَ
जिन लोगों ने धैर्य धारण किया तथा अपने पालनहार पर ही वे भरोसा करते हैं।
التفاسير العربية:
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ إِلَّا رِجَالٗا
نُّوحِيٓ إِلَيۡهِمۡۖ فَسۡـَٔلُوٓاْ أَهۡلَ ٱلذِّكۡرِ إِن كُنتُمۡ لَا
تَعۡلَمُونَ
और (हे नबी!) हमने आपसे पहले जो
भी रसूल भेजे, वे सभी मानव-पुरुष थे। जिनकी ओर हम वह़्यी (प्रकाशना) करते
रहे। तो तुम ज्ञानियों से पूछ लो, यदि (स्वयं) नहीं[1] जानते।
1. मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यदि अल्लाह को
कोई रसूल भेजना होता तो किसी फ़रिश्ते को भेजता। उसी पर यह आयत उतरी।
ज्ञानियों से अभिप्राय वह अह्ले किताब हैं जिन्हें आकाशीय पुस्तकों का
ज्ञान हो।
التفاسير العربية:
بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَٱلزُّبُرِۗ وَأَنزَلۡنَآ
إِلَيۡكَ ٱلذِّكۡرَ لِتُبَيِّنَ لِلنَّاسِ مَا نُزِّلَ إِلَيۡهِمۡ
وَلَعَلَّهُمۡ يَتَفَكَّرُونَ
प्रत्यक्ष (खुले) प्रमाणों तथा
पुस्तकों के साथ (उन्हें भेजा) और आपकी ओर ये शिक्षा (क़ुर्आन) अवतरित की,
ताकि आप उसे सर्वमानव के लिए उजागर कर दें, जो कुछ उनकी ओर उतारा गया है,
ताकि वे सोच-विचार करें।
التفاسير العربية:
أَفَأَمِنَ ٱلَّذِينَ مَكَرُواْ ٱلسَّيِّـَٔاتِ
أَن يَخۡسِفَ ٱللَّهُ بِهِمُ ٱلۡأَرۡضَ أَوۡ يَأۡتِيَهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ
حَيۡثُ لَا يَشۡعُرُونَ
तो क्या वे निर्भय हो गये हैं,
जिन्होंने बुरे षड्यंत्र रचे हैं कि अल्लाह उन्हें धरती में धंसा दे? अथवा
उनपर यातना ऐसी दिशा से आ जाये, जिसे वे सोचते भी न हों?
التفاسير العربية:
أَوۡ يَأۡخُذَهُمۡ فِي تَقَلُّبِهِمۡ فَمَا هُم بِمُعۡجِزِينَ
या उन्हें चलते-फिरते पकड़ ले, तो वे (अल्लाह को) विवश करने वाले नहीं हैं।
التفاسير العربية:
أَوۡ يَأۡخُذَهُمۡ عَلَىٰ تَخَوُّفٖ فَإِنَّ رَبَّكُمۡ لَرَءُوفٞ رَّحِيمٌ
अथवा उन्हें भय की दशा में पकड़[1] ले? निश्चय तुम्हारा पालनहार अति करुणामय दयावान् है।
1. अर्थात जब कि पहले से उन्हें आपदा का भय हो।
التفاسير العربية:
أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ إِلَىٰ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ مِن
شَيۡءٖ يَتَفَيَّؤُاْ ظِلَٰلُهُۥ عَنِ ٱلۡيَمِينِ وَٱلشَّمَآئِلِ سُجَّدٗا
لِّلَّهِ وَهُمۡ دَٰخِرُونَ
क्या अल्लाह की उत्पन्न की हुई
किसी चीज़ को उन्होंने नहीं देखा? जिसकी छाया दायें तथा बायें झुकती है,
अल्लाह को सज्दा करते हुए? और वे सर्व विनयशील हैं।
التفاسير العربية:
وَلِلَّهِۤ يَسۡجُدُۤ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا
فِي ٱلۡأَرۡضِ مِن دَآبَّةٖ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ وَهُمۡ لَا
يَسۡتَكۡبِرُونَ
तथा अल्लाह ही को सज्दा करते हैं, जो आकाशों में तथा धरती में चर (जीव) तथा फ़रिश्ते हैं और वे अहंकार नहीं करते।
التفاسير العربية:
يَخَافُونَ رَبَّهُم مِّن فَوۡقِهِمۡ وَيَفۡعَلُونَ مَا يُؤۡمَرُونَ۩
वे[1] अपने पालनहार से डरते हैं, जो उनके ऊपर है और वही करते हैं, जो आदेश दिये जाते हैं।
1. अर्थात फ़रिश्ते।
التفاسير العربية:
۞وَقَالَ ٱللَّهُ لَا تَتَّخِذُوٓاْ إِلَٰهَيۡنِ
ٱثۡنَيۡنِۖ إِنَّمَا هُوَ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞ فَإِيَّـٰيَ فَٱرۡهَبُونِ
और अल्लाह ने कहाः दो पूज्य न बनाओ, वही अकेला पूज्य है। अतः तुम मुझी से डरो।
التفاسير العربية:
وَلَهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَلَهُ
ٱلدِّينُ وَاصِبًاۚ أَفَغَيۡرَ ٱللَّهِ تَتَّقُونَ
और उसी का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और उसी की वंदना स्थायी है, तो क्या तुम अल्लाह के सिवा दूसरे से डरते हो?
التفاسير العربية:
وَمَا بِكُم مِّن نِّعۡمَةٖ فَمِنَ ٱللَّهِۖ ثُمَّ
إِذَا مَسَّكُمُ ٱلضُّرُّ فَإِلَيۡهِ تَجۡـَٔرُونَ
तुम्हें, जोभी सुख-सुविधा प्राप्त है, वह अल्लाह ही की ओर से है। फिर जब तुम्हें दुःख पहुँचता है, तो उसी को पुकारते हो।
التفاسير العربية:
ثُمَّ إِذَا كَشَفَ ٱلضُّرَّ عَنكُمۡ إِذَا فَرِيقٞ مِّنكُم بِرَبِّهِمۡ يُشۡرِكُونَ
फिर जब तुमसे दुःख दूर कर देता है, तो तुम्हारा एक समुदाय अपने पालनहार का साझी बनाने लगता है।
التفاسير العربية:
لِيَكۡفُرُواْ بِمَآ ءَاتَيۡنَٰهُمۡۚ فَتَمَتَّعُواْ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ
ताकि हमने उन्हें, जो कुछ प्रदान किया है, उसके प्रति कृतघ्न हों, तो आनन्द ले लो, तुम्हें शीघ्र ही ज्ञान हो जायेगा।
التفاسير العربية:
وَيَجۡعَلُونَ لِمَا لَا يَعۡلَمُونَ نَصِيبٗا
مِّمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡۗ تَٱللَّهِ لَتُسۡـَٔلُنَّ عَمَّا كُنتُمۡ
تَفۡتَرُونَ
और वे जिन्हें जानते[1] तक
नहीं, उनका एक भाग, उसमें से बनाते हैं, जो जीविका हमने उन्हें दी है। तो
अल्लाह की शपथ! तुमसे अवश्य पूछा जायेगा, उसके विषय में, जो तुम झूठी बातें
बना रहे थे?
1. अर्थात अपने देवी-देवताओं की वास्तविक्ता को नहीं जानते।
التفاسير العربية:
وَيَجۡعَلُونَ لِلَّهِ ٱلۡبَنَٰتِ سُبۡحَٰنَهُۥ وَلَهُم مَّا يَشۡتَهُونَ
और वे अल्लाह के लिए पुत्रियाँ बनाते[1] हैं, वह पवित्र है! और उनके लिए वह[2] है, जो वे स्वयं चाहते हों?
1. अरब के मुश्रिकों के पूज्यों में देवताओं से
अधिक देवियाँ थीं। जिन के संबन्ध में उन का विचार था कि यह अल्लाह की
पुत्रियाँ हैं। इसी प्रकार फ़रिश्तों को भी वे अल्लाह की पुत्रियाँ कहते
थे, जिस का यहाँ खण्डन किया गया है। 2. अर्थात पुत्र।
التفاسير العربية:
وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُم بِٱلۡأُنثَىٰ ظَلَّ وَجۡهُهُۥ مُسۡوَدّٗا وَهُوَ كَظِيمٞ
और जब उनमें से किसी को पुत्री (के जन्म) की शुभसूचना दी जाये, तो उसका मुख काला हो जाता है और वह शोकपूर्ण हो जाता है।
التفاسير العربية:
يَتَوَٰرَىٰ مِنَ ٱلۡقَوۡمِ مِن سُوٓءِ مَا
بُشِّرَ بِهِۦٓۚ أَيُمۡسِكُهُۥ عَلَىٰ هُونٍ أَمۡ يَدُسُّهُۥ فِي
ٱلتُّرَابِۗ أَلَا سَآءَ مَا يَحۡكُمُونَ
और लोगों से छुपा फिरता है, उस
बुरी सूचना के कारण, जो उसे दी गयी है। (सोचता है कि) क्या[1] उसे अपमान के
साथ रोक ले अथवा भूमि में गाड़ दे? देखो! वे कितना बुरा निर्णय करते हैं।
1. अर्थात जीवित रहने दे। इस्लाम से पूर्व अरब
समाज के कुछ क़बीलों में पुत्रियों के जन्म को लज्जा की चीज़ समझा जाता था।
जिस का चित्रण इस आयत में किया गया है।
التفاسير العربية:
لِلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ مَثَلُ
ٱلسَّوۡءِۖ وَلِلَّهِ ٱلۡمَثَلُ ٱلۡأَعۡلَىٰۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ
उन्हीं के लिए जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं रखते अपगुण है और अल्लाह के लिए सदगुण हैं तथा वह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
التفاسير العربية:
وَلَوۡ يُؤَاخِذُ ٱللَّهُ ٱلنَّاسَ بِظُلۡمِهِم
مَّا تَرَكَ عَلَيۡهَا مِن دَآبَّةٖ وَلَٰكِن يُؤَخِّرُهُمۡ إِلَىٰٓ
أَجَلٖ مُّسَمّٗىۖ فَإِذَا جَآءَ أَجَلُهُمۡ لَا يَسۡتَـٔۡخِرُونَ سَاعَةٗ
وَلَا يَسۡتَقۡدِمُونَ
और यदि अल्लाह, लोगों को उनके
अत्याचार[1] पर (तत्क्षण) धरने लगे, तो धरती में किसी जीव को न छोड़े।
परन्तु वह एक निर्धारित अवधि तक निलम्बित करता[2] है और जब उनकी अवधि आ
जायेगी, तो एक क्षण न पीछे होंगे, न पहले।
1. अर्थात शिर्क और पापाचारों पर। 2. अर्थात अवसर देता है।
التفاسير العربية:
وَيَجۡعَلُونَ لِلَّهِ مَا يَكۡرَهُونَۚ وَتَصِفُ
أَلۡسِنَتُهُمُ ٱلۡكَذِبَ أَنَّ لَهُمُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ لَا جَرَمَ أَنَّ
لَهُمُ ٱلنَّارَ وَأَنَّهُم مُّفۡرَطُونَ
वह अल्लाह के लिए उसे[1] बनाते
हैं, जिसे स्वयं अप्रिय समझते हैं तथा उनकी ज़ुबानें झूठ बोलती हैं कि
उन्हीं के लिए भलाई है। निश्चय उन्हीं के लिए नरक है और वही सबसे पहले (नरक
में) झोंके जायेंगे।
1. अर्थात पुत्रियाँ।
التفاسير العربية:
تَٱللَّهِ لَقَدۡ أَرۡسَلۡنَآ إِلَىٰٓ أُمَمٖ
مِّن قَبۡلِكَ فَزَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ أَعۡمَٰلَهُمۡ فَهُوَ
وَلِيُّهُمُ ٱلۡيَوۡمَ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ
अल्लाह की शपथ! (हे नबी!) आपसे
पहले हमने बहुत-से समुदायों की ओर रसूल भेजे। तो उनके लिए शैतान ने उनके
कुकर्मों को सुसज्जित बना दिया। अतः वही आज उनका सहायक है और उन्हीं के लिए
दुःखदायी यातना है।
التفاسير العربية:
وَمَآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ إِلَّا
لِتُبَيِّنَ لَهُمُ ٱلَّذِي ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٗ
لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ
और हमने आपपर ये पुस्तक
(क़ुर्आन) इसी लिए उतारी है, ताकि आप उनके लिए उसे उजागर कर दें, जिसमें वे
विभेद कर रहे हैं तथा मार्गदर्शन और दया है, उन लोगों के लिए, जो ईमान
(विश्वास) रखते हैं।
التفاسير العربية:
وَٱللَّهُ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ
فَأَحۡيَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَآۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ
لِّقَوۡمٖ يَسۡمَعُونَ
और अल्लाह ने ही आकाश से जल
बरसाया, फिर उसने निर्जीव धरती को जीवित कर दिया। निश्चय इसमें उन लोगों के
लिए एक निशानी है, जो सुनते हैं।
التفاسير العربية:
وَإِنَّ لَكُمۡ فِي ٱلۡأَنۡعَٰمِ لَعِبۡرَةٗۖ
نُّسۡقِيكُم مِّمَّا فِي بُطُونِهِۦ مِنۢ بَيۡنِ فَرۡثٖ وَدَمٖ لَّبَنًا
خَالِصٗا سَآئِغٗا لِّلشَّـٰرِبِينَ
तथा वास्तव में, तुम्हारे लिए
पशुओं में एक शिक्षा है। हम तुम्हें उससे, जो उसके भीतर है, गोबर तथा रक्त
के बीच से शुध्द दूध पिलाते हैं, जो पीने वालों के लिए रुचिकर होता है।
التفاسير العربية:
وَمِن ثَمَرَٰتِ ٱلنَّخِيلِ وَٱلۡأَعۡنَٰبِ
تَتَّخِذُونَ مِنۡهُ سَكَرٗا وَرِزۡقًا حَسَنًاۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ
لَأٓيَةٗ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ
तथा खजूरों और अंगूरों के फलों
से, जिससे तुम मदिरा बना लेते हो तथा उत्तम जीविका भी, वास्तव में, इसमें
एक निशानी (लक्षण) है, उन लोगों के लिए, जो समझ-बूझ रखते हैं।
التفاسير العربية:
وَأَوۡحَىٰ رَبُّكَ إِلَى ٱلنَّحۡلِ أَنِ
ٱتَّخِذِي مِنَ ٱلۡجِبَالِ بُيُوتٗا وَمِنَ ٱلشَّجَرِ وَمِمَّا يَعۡرِشُونَ
और हमने मधुमक्खी को प्रेरणा दी कि पर्वतों में घर (छत्ते) बना तथा वृक्षों में और लोगों की बनायी छतों में।
التفاسير العربية:
ثُمَّ كُلِي مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ فَٱسۡلُكِي
سُبُلَ رَبِّكِ ذُلُلٗاۚ يَخۡرُجُ مِنۢ بُطُونِهَا شَرَابٞ مُّخۡتَلِفٌ
أَلۡوَٰنُهُۥ فِيهِ شِفَآءٞ لِّلنَّاسِۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ
لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ
फिर प्रत्येक फलों का रस चूस और
अपने पालनहार की सरल राहों पर चलती रह। उसके भीतर से एक पेय निकलता है, जो
विभिन्न रंगों का होता है, जिसमें लोगों के लिए आरोग्य है। वास्तव में,
इसमें एक निशानी (लक्षण) है, उन लोगों के लिए, जो सोच-विचार करते हैं।
التفاسير العربية:
وَٱللَّهُ خَلَقَكُمۡ ثُمَّ يَتَوَفَّىٰكُمۡۚ
وَمِنكُم مَّن يُرَدُّ إِلَىٰٓ أَرۡذَلِ ٱلۡعُمُرِ لِكَيۡ لَا يَعۡلَمَ
بَعۡدَ عِلۡمٖ شَيۡـًٔاۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٞ قَدِيرٞ
और अल्लाह ही ने तुम्हारी
उत्पत्ति की है, फिर तुम्हें मौत देता है और तुममें से कुछको अबोध आयु तक
पहुँचा दिया जाता है, ताकि जानने के पश्चात् कुछ न जाने। वास्तव में,
अल्लाह सर्वज्ञ, सर्व सामर्थ्यवान्[1] है।
1. अर्थात वह पुनः जीवित भी कर सकता है।
التفاسير العربية:
وَٱللَّهُ فَضَّلَ بَعۡضَكُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ فِي
ٱلرِّزۡقِۚ فَمَا ٱلَّذِينَ فُضِّلُواْ بِرَآدِّي رِزۡقِهِمۡ عَلَىٰ مَا
مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُهُمۡ فَهُمۡ فِيهِ سَوَآءٌۚ أَفَبِنِعۡمَةِ ٱللَّهِ
يَجۡحَدُونَ
और अल्लाह ने तुममें से कुछ को,
कुछ पर जीविका में प्रधानता दी है, तो जिन्हें प्रधानता दी गयी है, वे
अपनी जीविका अपने दासों की ओर फेरने वाले नहीं कि वे उसमें बराबर हो जायें,
तो क्या वे अल्लाह के उपकारों को नहीं मानते हैं[1]?
1. आयत का भावार्थ यह है कि जब वह स्वयं अपने
दासों को अपने बराबर करने के लिये तैयार नहीं हैं तो फिर अल्लाह की
उत्पत्ति और उस के दासों को कैसे पूजा-अर्चना में उस के बराबर करते हैं?
क्या यह अल्लाह के उपकारों का इन्कार नहीं है?
التفاسير العربية:
وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنۡ أَنفُسِكُمۡ
أَزۡوَٰجٗا وَجَعَلَ لَكُم مِّنۡ أَزۡوَٰجِكُم بَنِينَ وَحَفَدَةٗ
وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِۚ أَفَبِٱلۡبَٰطِلِ يُؤۡمِنُونَ
وَبِنِعۡمَتِ ٱللَّهِ هُمۡ يَكۡفُرُونَ
और अल्लाह ने तुम्हारे लिए
तुम्हीं में से पत्नियाँ बनायीं और तुम्हारे लिए तुम्हारी पत्नियों से
पुत्र तथा पौत्र बनाये और तुम्हें स्वच्छ चीज़ों से जीविका प्रदान की। तो
क्या वे असत्य पर विश्वास रखते हैं और अल्लाह के पुरस्कारों के प्रति
अविश्वास रखते हैं?
التفاسير العربية:
وَيَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَمۡلِكُ
لَهُمۡ رِزۡقٗا مِّنَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ شَيۡـٔٗا وَلَا
يَسۡتَطِيعُونَ
और अल्लाह के सिवा उनकी वंदना
करते हैं, जो उनके लिए आकाशों तथा धरती से कुछ भी जीविका देने का अधिकार
नहीं रखते और न इसका सामर्थ्य रखते हैं।
التفاسير العربية:
فَلَا تَضۡرِبُواْ لِلَّهِ ٱلۡأَمۡثَالَۚ إِنَّ
ٱللَّهَ يَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ
और अल्लाह के लिए उदाहरण न दो। वास्तव में, अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते[1]।
1. क्यों कि उस के समान कोई नहीं।
التفاسير العربية:
۞ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلًا عَبۡدٗا مَّمۡلُوكٗا لَّا
يَقۡدِرُ عَلَىٰ شَيۡءٖ وَمَن رَّزَقۡنَٰهُ مِنَّا رِزۡقًا حَسَنٗا فَهُوَ
يُنفِقُ مِنۡهُ سِرّٗا وَجَهۡرًاۖ هَلۡ يَسۡتَوُۥنَۚ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ
بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
अल्लाह ने एक उदाहरण[1] दिया
है; एक प्राधीन दास है, जो किसी चीज़ का अधिकार नहीं रखता और दूसरा
(स्वाधीन) व्यक्ति है, जिसे हमने अपनी ओर से उत्तम जीविका प्रदान की है और
वह उसमें छुपे और खुले व्यय करता है। क्या वे दोनों समान हो जायेंगे? सब
प्रशंसा अल्लाह[2] के लिए है। बल्कि अधिक्तर लोग (ये बात) नहीं जानते।
1. आयत का भावार्थ यह है कि जैसे पराधीन दास और
धनी स्वतंत्र व्यक्ति को तुम बराबर नहीं समझते, ऐसे मुझे और इन मूर्तियों
को कैसे बराबर समझ रहे हो जो एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकतीं। और यदि मक्खी
उन का चढ़ावा ले भागे तो वह छीन भी नहीं सकतीं? इस से बड़ा अत्याचार क्या
हो सकता है? 2. अर्थात अल्लाह के सिवा तुम्हारे पूज्यों में से कोई प्रशंसा
के लायक़ नहीं है।
التفاسير العربية:
وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا رَّجُلَيۡنِ
أَحَدُهُمَآ أَبۡكَمُ لَا يَقۡدِرُ عَلَىٰ شَيۡءٖ وَهُوَ كَلٌّ عَلَىٰ
مَوۡلَىٰهُ أَيۡنَمَا يُوَجِّههُّ لَا يَأۡتِ بِخَيۡرٍ هَلۡ يَسۡتَوِي هُوَ
وَمَن يَأۡمُرُ بِٱلۡعَدۡلِ وَهُوَ عَلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ
तथा अल्लाह ने दो व्यक्तियों का
उदाहरण दिया है; दोनों में से एक गूँगा है, वह किसी चीज़ का अधिकार नहीं
रखता, वह अपने स्वामी पर बोझ है, वह उसे जहाँ भेजता है, कोई भलाई नहीं
लाता। तो क्या वह और जो न्याय का आदेश देता हो और स्वयं सीधी[1] राह पर हो,
बराबर हो जायेंगे?
1. यह दूसरा उदाहरण है जो मूर्तियों का दिया है। जो गूँगी-बहरी होती हैं।
التفاسير العربية:
وَلِلَّهِ غَيۡبُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ
وَمَآ أَمۡرُ ٱلسَّاعَةِ إِلَّا كَلَمۡحِ ٱلۡبَصَرِ أَوۡ هُوَ أَقۡرَبُۚ
إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
और अल्लाह ही को आकाशों तथा
धरती के परोक्ष[1] का ज्ञान है और प्रलय (क़्यामत) का विषय तो बस पलक झपकने
जैसा[2] होगा अथवा उससे भी अधिक शीघ्र। वास्तव में, अल्लाह जो चाहे, कर
सकता है।
1. अर्थात गुप्त तथ्यों का। 2. अर्थात पल भर में आयेगी
التفاسير العربية:
وَٱللَّهُ أَخۡرَجَكُم مِّنۢ بُطُونِ
أُمَّهَٰتِكُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ شَيۡـٔٗا وَجَعَلَ لَكُمُ ٱلسَّمۡعَ
وَٱلۡأَبۡصَٰرَ وَٱلۡأَفۡـِٔدَةَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
और अल्लाह ही ने तुम्हें
तुम्हारी माताओं के गर्भों से निकाला, इस दशा में कि तुम कुछ नहीं जानते थे
और तुम्हारे कान और आँख तथा दिल बनाये, ताकि तुम (उसका) उपकार मानो।
التفاسير العربية:
أَلَمۡ يَرَوۡاْ إِلَى ٱلطَّيۡرِ مُسَخَّرَٰتٖ فِي
جَوِّ ٱلسَّمَآءِ مَا يُمۡسِكُهُنَّ إِلَّا ٱللَّهُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ
لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ
क्या वे पक्षियों को नहीं देखते
कि वे अंतरिक्ष में कैसे वशीभूत हैं? उन्हें अल्लाह ही थामता[1] है।
वास्तव में, इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते
हैं।
1. अर्थात पक्षियों को यह क्षमता अल्लाह ही ने दी है।
التفاسير العربية:
وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنۢ بُيُوتِكُمۡ سَكَنٗا
وَجَعَلَ لَكُم مِّن جُلُودِ ٱلۡأَنۡعَٰمِ بُيُوتٗا تَسۡتَخِفُّونَهَا
يَوۡمَ ظَعۡنِكُمۡ وَيَوۡمَ إِقَامَتِكُمۡ وَمِنۡ أَصۡوَافِهَا
وَأَوۡبَارِهَا وَأَشۡعَارِهَآ أَثَٰثٗا وَمَتَٰعًا إِلَىٰ حِينٖ
और अल्लाह ही ने तुम्हारे घरों
को निवास स्थान बनाया और पशुओं की खालों से तुम्हारे लिए ऐसे घर[1] बनाये,
जिन्हें तुम अपनी यात्रा तथा अपने विराम के दिन हल्का (अल्पभार) पाते हो और
उनकी ऊन और रोम तथा बालों से उपक्रण और लाभ के सामान, जीवन की निश्चित
अवधि तक के लिए (बनाये)।
1. अर्थात चमड़ों के खेमे।
التفاسير العربية:
وَٱللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّمَّا خَلَقَ ظِلَٰلٗا
وَجَعَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡجِبَالِ أَكۡنَٰنٗا وَجَعَلَ لَكُمۡ سَرَٰبِيلَ
تَقِيكُمُ ٱلۡحَرَّ وَسَرَٰبِيلَ تَقِيكُم بَأۡسَكُمۡۚ كَذَٰلِكَ يُتِمُّ
نِعۡمَتَهُۥ عَلَيۡكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تُسۡلِمُونَ
और अल्लाह ही ने तुम्हार लिए उस
चीज़ में से, जो उत्पन्न की है, छाया बनायी है और तुम्हारे लिए पर्वतों
में गुफाएँ बनायी हैं और तुम्हारे लिए ऐसे वस्त्र बनाये हैं, जो तुम्हे धूप
से बचायें[1]। इसी प्रकार, वह तुमपर अपना उपकार पूरा करता है, ताकि तुम
आज्ञाकारी बनो।
1. अर्थात कवच आदि।
التفاسير العربية:
فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّمَا عَلَيۡكَ ٱلۡبَلَٰغُ ٱلۡمُبِينُ
फिर यदि वे विमुख हों, तो आपपर बस प्रत्यक्ष (खुला) उपदेश पहुँचा देना है।
التفاسير العربية:
يَعۡرِفُونَ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ ثُمَّ يُنكِرُونَهَا وَأَكۡثَرُهُمُ ٱلۡكَٰفِرُونَ
वे अल्लाह के उपकार पहचानते हैं, फिर उसका इन्कार करते हैं और उनमें अधिक्तर कृतघ्न हैं।
التفاسير العربية:
وَيَوۡمَ نَبۡعَثُ مِن كُلِّ أُمَّةٖ شَهِيدٗا
ثُمَّ لَا يُؤۡذَنُ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ وَلَا هُمۡ يُسۡتَعۡتَبُونَ
और जिस[1] दिन, हम प्रत्येक
समुदाय से एक साक्षी (गवाह) खड़ा[2] करेंगे, फिर काफ़िरों को बात करने की
अनुमति नहीं दी जायेगी और न उनसे क्षमा याचना की माँग की जायेगी।
1. अर्थात प्रलय के दिन। 2. (देखियेः सूरह निसा, आयतः41)
التفاسير العربية:
وَإِذَا رَءَا ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ ٱلۡعَذَابَ
فَلَا يُخَفَّفُ عَنۡهُمۡ وَلَا هُمۡ يُنظَرُونَ
और जब अत्याचारी यातना देखेंगे, उनकी यातना कुछ कम नहीं की जायेगी और न उन्हें अवकाश दिया[1] जायेगा।
1. अर्थात तौबा करने का।
التفاسير العربية:
وَإِذَا رَءَا ٱلَّذِينَ أَشۡرَكُواْ
شُرَكَآءَهُمۡ قَالُواْ رَبَّنَا هَـٰٓؤُلَآءِ شُرَكَآؤُنَا ٱلَّذِينَ
كُنَّا نَدۡعُواْ مِن دُونِكَۖ فَأَلۡقَوۡاْ إِلَيۡهِمُ ٱلۡقَوۡلَ
إِنَّكُمۡ لَكَٰذِبُونَ
और जब मुश्रिक अपने (बनाये हुए)
साझियों को देखेंगे, तो कहेंगेः हे हमारे पालनहार! यही हमारे साझी हैं,
जिन्हें हम, तुझे छोड़कर पुकार रहे थे। तो वे (पूज्य) बोलेंगे कि निश्चय
तुम सब मिथ्यावादी (झूठे) हो।
التفاسير العربية:
وَأَلۡقَوۡاْ إِلَى ٱللَّهِ يَوۡمَئِذٍ ٱلسَّلَمَۖ
وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَفۡتَرُونَ
उस दिन, वे अल्लाह के आगे झुक जायेंगे और उनसे खो जायेँगी, जो मिथ्या बातें वे बनाते थे।
التفاسير العربية:
ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ
ٱللَّهِ زِدۡنَٰهُمۡ عَذَابٗا فَوۡقَ ٱلۡعَذَابِ بِمَا كَانُواْ
يُفۡسِدُونَ
जो लोग काफिर हो गये और (दूसरों
को भी) अल्लाह की डगर (इस्लाम) से रोक दिये, उन्हें हम यातना पर यातना
देंगे, उस उपद्रव के बदले, जो वे कर रहे थे।
التفاسير العربية:
وَيَوۡمَ نَبۡعَثُ فِي كُلِّ أُمَّةٖ شَهِيدًا
عَلَيۡهِم مِّنۡ أَنفُسِهِمۡۖ وَجِئۡنَا بِكَ شَهِيدًا عَلَىٰ
هَـٰٓؤُلَآءِۚ وَنَزَّلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ تِبۡيَٰنٗا لِّكُلِّ
شَيۡءٖ وَهُدٗى وَرَحۡمَةٗ وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُسۡلِمِينَ
और जिस दिन, हम प्रत्येक समुदाय
से एक साक्षी उनके विरुध्द उन्हीं में से खड़ा कर देंगे और (हे नबी!) हम
आपको उनपर साक्षी (गवाह) बनायेंगे[1] और हमने आपपर ये पुस्तक (क़ुर्आन)
अवतरित की है, जो प्रत्येक विषय का खुला विवरण है, मार्गदर्शन दया तथा शुभ
सूचना है आज्ञाकारियों के लिए।
1. (देखियेः सूरह बक़रा, आयतः143)
التفاسير العربية:
۞إِنَّ ٱللَّهَ يَأۡمُرُ بِٱلۡعَدۡلِ
وَٱلۡإِحۡسَٰنِ وَإِيتَآيِٕ ذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَيَنۡهَىٰ عَنِ
ٱلۡفَحۡشَآءِ وَٱلۡمُنكَرِ وَٱلۡبَغۡيِۚ يَعِظُكُمۡ لَعَلَّكُمۡ
تَذَكَّرُونَ
वस्तुतः, अल्लाह तुम्हें न्याय,
उपकार और समीपवर्तियों को देने का आदेश दे रहा है और निर्लज्जा, बुराई और
विद्रोह से रोक रहा है और तुम्हें सिखा रहा है, ताकि तुम शिक्षा ग्रहण करो।
التفاسير العربية:
وَأَوۡفُواْ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ إِذَا عَٰهَدتُّمۡ
وَلَا تَنقُضُواْ ٱلۡأَيۡمَٰنَ بَعۡدَ تَوۡكِيدِهَا وَقَدۡ جَعَلۡتُمُ
ٱللَّهَ عَلَيۡكُمۡ كَفِيلًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا تَفۡعَلُونَ
और जब अल्लाह से कोई वचन करो,
तो उसे पूरा करो और अपनी शपथों को सुदृढ़ करने के पश्चात् भंग न करो, जब
तुमने अल्लाह को अपने ऊपर गवाह बनाया है। निश्चय अल्लाह जो कुछ तुम करते
हो, उसे जानता है।
التفاسير العربية:
وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّتِي نَقَضَتۡ غَزۡلَهَا
مِنۢ بَعۡدِ قُوَّةٍ أَنكَٰثٗا تَتَّخِذُونَ أَيۡمَٰنَكُمۡ دَخَلَۢا
بَيۡنَكُمۡ أَن تَكُونَ أُمَّةٌ هِيَ أَرۡبَىٰ مِنۡ أُمَّةٍۚ إِنَّمَا
يَبۡلُوكُمُ ٱللَّهُ بِهِۦۚ وَلَيُبَيِّنَنَّ لَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ
مَا كُنتُمۡ فِيهِ تَخۡتَلِفُونَ
और तुम्हारी दशा उस स्त्री जैसी
न हो जाये, जिसने अपना सूत कातने के पश्चात् उधेड़ दिया। तुम अपनी शपथों
को आपस में विश्वासघात का साधन बनाते हो, ताकि एक समुदाय दूसरे समुदाय से
अधिक लाभ प्राप्त करे। अल्लाह इस[1] (वचन) के द्वारा तुम्हारी परीक्षा ले
रहा है और प्रलय के दिन तुम्हारे लिए अवश्य उसे उजागर कर देगा, जिसमें तुम
विभेद कर रहे थे।
1. अर्थात किसी समुदाय से समझौता कर के विश्वासघात
न किया जाये कि दूसरे समुदाय से अधिक लाभ मिलने पर समझौता तोड़ दिया जाये।
التفاسير العربية:
وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَجَعَلَكُمۡ أُمَّةٗ
وَٰحِدَةٗ وَلَٰكِن يُضِلُّ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۚ
وَلَتُسۡـَٔلُنَّ عَمَّا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ
और यदि अल्लाह चाहता, तो
तुम्हें एक समुदाय बना देता। परन्तु वह जिसे चाहता है, कुपथ कर देता है और
जिसे चाहता है, सुपथ दर्शा देता है और तुमसे उसके बारे में अवश्य पूछा
जायेगा, जो तुम कर रहे थे।
التفاسير العربية:
وَلَا تَتَّخِذُوٓاْ أَيۡمَٰنَكُمۡ دَخَلَۢا
بَيۡنَكُمۡ فَتَزِلَّ قَدَمُۢ بَعۡدَ ثُبُوتِهَا وَتَذُوقُواْ ٱلسُّوٓءَ
بِمَا صَدَدتُّمۡ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَكُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ
और अपनी शपथों को आपस में
विश्वासघात का साधन न बनाओ, ऐसा न हो कि कोई पग अपने स्थिर (दृढ़) होने के
पश्चात् (ईमान से) फिसल[1] जाये और तुम उसके बदले बुरा परिणाम चखो कि तुमने
अल्लाह की राह से रोका है और तुम्हारे लिए बड़ी यातना हो।
1. अर्थात ऐसा न हो कि कोई व्यक्ति इस्लाम की
सत्यता को स्वीकार करने के पश्चात् केवल तुम्हारे दुराचार को देख कर इस्लाम
से फिर जाये। और तुम्हारे समुदाय में सम्मिलित होने से रुक जाये। अन्यथा
तुम्हारा व्यवहार भी दूसरों से कुछ भिन्न नहीं है।
التفاسير العربية:
وَلَا تَشۡتَرُواْ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ ثَمَنٗا
قَلِيلًاۚ إِنَّمَا عِندَ ٱللَّهِ هُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ
تَعۡلَمُونَ
और अल्लाह से किये हुए वचन को
तनिक मूल्य के बदले न बेचो[1]। वास्तव में, जो अल्लाह के पास है, वही
तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो।
1. अर्थात संसारिक लाभ के लिये वचन भंग न करो। (देखियेः सूरह आराफ़, आयतः172)
التفاسير العربية:
مَا عِندَكُمۡ يَنفَدُ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ بَاقٖۗ
وَلَنَجۡزِيَنَّ ٱلَّذِينَ صَبَرُوٓاْ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ مَا كَانُواْ
يَعۡمَلُونَ
जो तुम्हारे पास है, वह व्यय
(ख़र्च) हो जायेगा और जो अल्लाह के पास है, वह शेष रह जाने वाला है और हम,
जो धैर्य धारण करते हैं, उन्हें अवश्य उनका पारिश्रमिक (बदला) उनके उत्तम
कर्मों के अनुसार प्रदान करेंगे।
التفاسير العربية:
مَنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا مِّن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰ
وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَلَنُحۡيِيَنَّهُۥ حَيَوٰةٗ طَيِّبَةٗۖ
وَلَنَجۡزِيَنَّهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
जो भी सदाचार करेगा, वह नर हो
अथवा नारी और ईमान वाला हो, तो हम उसे स्वच्छ जीवन व्यतीत करायेंगे और
उन्हें उनका पारिश्रमिक उनके उत्तम कर्मों के अनुसार अवश्य प्रदान करेंगे।
التفاسير العربية:
فَإِذَا قَرَأۡتَ ٱلۡقُرۡءَانَ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِ مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ ٱلرَّجِيمِ
तो (हे नबी!) जब आप क़ुर्आन का अध्ययन करें, तो धिक्कारे हुए शैतान से अललाह की शरण[1] माँग लिया करें।
1. अर्थात "अऊज़ुबिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम" पढ़ लिया करें।
التفاسير العربية:
إِنَّهُۥ لَيۡسَ لَهُۥ سُلۡطَٰنٌ عَلَى ٱلَّذِينَ
ءَامَنُواْ وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ يَتَوَكَّلُونَ
वस्तुतः, उसका वश उनपर नहीं है, जो ईमान लाये हैं और अपने पालनहार ही पर भरोसा करते हैं।
التفاسير العربية:
إِنَّمَا سُلۡطَٰنُهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ
يَتَوَلَّوۡنَهُۥ وَٱلَّذِينَ هُم بِهِۦ مُشۡرِكُونَ
उसका वश तो केवल उनपर चलता है, जो उसे अपना संरक्षक बनाते हैं और जो मिश्रणवादी (मुश्रिक) हैं।
التفاسير العربية:
وَإِذَا بَدَّلۡنَآ ءَايَةٗ مَّكَانَ ءَايَةٖ
وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا يُنَزِّلُ قَالُوٓاْ إِنَّمَآ أَنتَ مُفۡتَرِۭۚ
بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
और जब हम किसी आयत (विधान) के
स्थान पर कोई आयत बदल देते हैं और अल्लाह ही अधिक जानता है उसे, जिसे वह
उतारता है, तो कहते हैं कि आप तो केवल घड़ लेते हैं, बल्कि उनमें अधिक्तर
जानते ही नहीं।
التفاسير العربية:
قُلۡ نَزَّلَهُۥ رُوحُ ٱلۡقُدُسِ مِن رَّبِّكَ
بِٱلۡحَقِّ لِيُثَبِّتَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَهُدٗى وَبُشۡرَىٰ
لِلۡمُسۡلِمِينَ
आप कह दें कि इसे (रूह़ुल
कुदुस)[1] ने आपके पालनहार की ओर से सत्य के साथ क्रमशः उतारा है, ताकि
उन्हें सुदृढ़ कर दे, जो ईमान लाये हैं तथा मार्गदर्शन और शुभ सूचना है,
आज्ञाकारियों के लिए।
2. इस का अर्थ पवित्रात्मा है। जो जिब्रील
अलैहिस्सलाम की उपाधि है। यही वह फ़रिश्ता है जो वह़्यी लाता था।
التفاسير العربية:
وَلَقَدۡ نَعۡلَمُ أَنَّهُمۡ يَقُولُونَ إِنَّمَا
يُعَلِّمُهُۥ بَشَرٞۗ لِّسَانُ ٱلَّذِي يُلۡحِدُونَ إِلَيۡهِ أَعۡجَمِيّٞ
وَهَٰذَا لِسَانٌ عَرَبِيّٞ مُّبِينٌ
तथा हम जानते हैं कि वे
(काफ़िर) कहते हैं कि उसे (नबी को) कोई मनुष्य सिखा रहा[1] है। जबकी उसकी
भाषा जिसकी ओर संकेत करते हैं, विदेशी है और ये[2] स्पष्ट अरबी भाषा है।
1. इस आयत में मक्का के मिश्रणवादियों के इस आरोप
का खण्डन किया गया है कि क़ुर्आन आप को एक विदेशी सिखा रहा है। 2. अर्थात
मक्के वाले जिसे कहते हैं कि वह मुह़म्मद को क़ुर्आन सिखाता है उस की भाषा
तो अर्बी है ही नहीं, तो वह आप को क़ुर्आन कैसे सिखा सकता है जो बहुत उत्तम
तथा श्रेष्ठ अर्बी भाषा में है। क्या वे इतना भी नहीं समझते?
التفاسير العربية:
إِنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِـَٔايَٰتِ
ٱللَّهِ لَا يَهۡدِيهِمُ ٱللَّهُ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٌ
वास्तव में, जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते, उन्हें अल्लाह सुपथ नहीं दर्शाता और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
التفاسير العربية:
إِنَّمَا يَفۡتَرِي ٱلۡكَذِبَ ٱلَّذِينَ لَا
يُؤۡمِنُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡكَٰذِبُونَ
झूठ केवल वही घड़ते हैं, जो अल्लाह की आयतों पर ईमान नहीं लाते और वही मिथ्यावादी (झूठे) हैं।
التفاسير العربية:
مَن كَفَرَ بِٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ إِيمَٰنِهِۦٓ
إِلَّا مَنۡ أُكۡرِهَ وَقَلۡبُهُۥ مُطۡمَئِنُّۢ بِٱلۡإِيمَٰنِ وَلَٰكِن
مَّن شَرَحَ بِٱلۡكُفۡرِ صَدۡرٗا فَعَلَيۡهِمۡ غَضَبٞ مِّنَ ٱللَّهِ
وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ
जिसने अल्लाह के साथ कुफ़्र
किया, अपने ईमान लाने के पश्चात्, परन्तु जो बाध्य कर दिया गया हो, इस दशा
में कि उसका दिल ईमान से संतुष्ट हो, (उसके लिए क्षमा है)। परन्तु जिसने
कुफ़्र के साथ सीना खोल दिया[1] हो, तो उन्हीं पर अल्लाह का प्रकोप है और
उन्हीं के लिए महा यातना है।
1. अर्थात स्वेच्छा कुफ़्र किया हो।
التفاسير العربية:
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمُ ٱسۡتَحَبُّواْ ٱلۡحَيَوٰةَ
ٱلدُّنۡيَا عَلَى ٱلۡأٓخِرَةِ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ
ٱلۡكَٰفِرِينَ
ये इसलिए कि उन्होंने सांसारिक जीवन को प्रलोक पर प्राथमिकता दी है और वास्तव में अल्लाह, काफ़िरों को सुपथ नहीं दिखाता।
التفاسير العربية:
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ
قُلُوبِهِمۡ وَسَمۡعِهِمۡ وَأَبۡصَٰرِهِمۡۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ
ٱلۡغَٰفِلُونَ
वही लोग हैं, जिनके दिलों, कानों और आँखों पर अल्लाह ने मुहर लगा दी है तथा यही लोग अचेत हैं।
التفاسير العربية:
لَا جَرَمَ أَنَّهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ
निश्चय वही लोग, प्रलोक में क्षतिग्रस्त होने वाले हैं।
التفاسير العربية:
ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ هَاجَرُواْ مِنۢ
بَعۡدِ مَا فُتِنُواْ ثُمَّ جَٰهَدُواْ وَصَبَرُوٓاْ إِنَّ رَبَّكَ مِنۢ
بَعۡدِهَا لَغَفُورٞ رَّحِيمٞ
फिर वास्तव में, आपका पालनहार
उन लोगों[1] के लिए जिन्होंने हिजरत (प्रस्थान) की और उसके पश्चात् परीक्षा
में डाले गये, फिर जिहाद किया और सहनशील रहे, वास्तव में, आपका पालनहार इस
(परीक्षा) के पश्चात् बड़ा क्षमाशील, दयावान् है।
1. इन से अभिप्रेत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
के वह अनुयायी हैं, जो मक्कासे मदीना हिजरत कर गये।
التفاسير العربية:
۞يَوۡمَ تَأۡتِي كُلُّ نَفۡسٖ تُجَٰدِلُ عَن
نَّفۡسِهَا وَتُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا عَمِلَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ
जिस दिन प्रत्येक प्राणी को
अपने बचाव की चिन्ता होगी और प्रत्येक प्राणी को उसके कर्मों का पूरा बदला
दिया जायेगा और उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
التفاسير العربية:
وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا قَرۡيَةٗ كَانَتۡ
ءَامِنَةٗ مُّطۡمَئِنَّةٗ يَأۡتِيهَا رِزۡقُهَا رَغَدٗا مِّن كُلِّ مَكَانٖ
فَكَفَرَتۡ بِأَنۡعُمِ ٱللَّهِ فَأَذَٰقَهَا ٱللَّهُ لِبَاسَ ٱلۡجُوعِ
وَٱلۡخَوۡفِ بِمَا كَانُواْ يَصۡنَعُونَ
अल्लाह ने एक बस्ती का उदाहरण
दिया है, जो शान्त संतुष्ट थी, उसकी जीविका प्रत्येक स्थान से प्राचूर्य के
साथ पहुँच रही थी, तो उसने अल्लाह के उपकारों के साथ कुफ़्र किया। तब
अल्ल्लाह ने उसे भूख और भय का वस्त्र चखा[1] दिया, उसके बदले जो वह[2] कर
रहे थे।
1. अर्थात उन पर भूख और भय की आपदायें छा गईं। 2.
अर्थात उस बस्ती के निवासी। और इस बस्ती से अभिप्रेत मक्का है, जिन पर उन
के कुफ़्र के कारण अकाल पड़ा।
التفاسير العربية:
وَلَقَدۡ جَآءَهُمۡ رَسُولٞ مِّنۡهُمۡ
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَهُمۡ ظَٰلِمُونَ
और उनके पास एक[1] रसूल उन्हीं में से आया, तो उन्होंने उसे झुठला दिया। अतः उन्हें यातना ने पकड़ लिया और वे अत्याचारी थे।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
मक्का के क़ुरैशी वंश से ही थे, फिर भी उन्हों ने आप की बात को नहीं माना।
التفاسير العربية:
فَكُلُواْ مِمَّا رَزَقَكُمُ ٱللَّهُ حَلَٰلٗا
طَيِّبٗا وَٱشۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ إِيَّاهُ تَعۡبُدُونَ
अतः उसमें से खाओ, जो अल्लाह ने
तुम्हें ह़लाल (वैध) स्वच्छ जीविका प्रदान की है और अल्लाह का उपकार मानो,
यदि तुम उसी की इबादत (वंदना) करते हो।
التفاسير العربية:
إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡمَيۡتَةَ
وَٱلدَّمَ وَلَحۡمَ ٱلۡخِنزِيرِ وَمَآ أُهِلَّ لِغَيۡرِ ٱللَّهِ بِهِۦۖ
فَمَنِ ٱضۡطُرَّ غَيۡرَ بَاغٖ وَلَا عَادٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ
رَّحِيمٞ
जो कुछ उसने तुमपर ह़राम (अवैध)
किया है, वह मुर्दार, रक्त और सुअर का मांस है और जिसपर अल्लाह के सिवा
दूसरे का नाम लिया गया[1] हो, फिर जो भूख से आतुर हो जाये, इस दशा में कि
वह नियम न तोड़ रहा[2] हो और न आवश्यक्ता से अधिक खाये, तो वास्तव में,
अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
1. अर्थात अल्लाह के सिवा अन्य के नाम से बलि दिया
गया पशु। ह़दीस में है कि जो अल्लाह के सिवा दूसरे के नाम से बलि दे उस पर
अल्लाह की धिक्कार है। (सह़ीह़ बुख़ारीः1978) 2. (देखियेः सूरह बक़रा,
आयतः173, सूरह माइदा, आयतः3, तथा सूरह अन्आम, आयतः145)
التفاسير العربية:
وَلَا تَقُولُواْ لِمَا تَصِفُ أَلۡسِنَتُكُمُ
ٱلۡكَذِبَ هَٰذَا حَلَٰلٞ وَهَٰذَا حَرَامٞ لِّتَفۡتَرُواْ عَلَى ٱللَّهِ
ٱلۡكَذِبَۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ يَفۡتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ لَا
يُفۡلِحُونَ
और मत कहो -उस झूठ के कारण, जो
तुम्हारी ज़ुबानों पर आ जाये- कि ये ह़लाल (वैध) है और ये ह़राम (अवैध) है,
ताकि अल्लाह पर मिथ्यारोप[1] करो। वास्तव में, जो लोग अल्लाह पर मिथ्यारोप
करते हैं, वे (कभी) सफल नहीं होते।
1. क्यों कि ह़लाल और ह़राम करने का अधिकार केवल अल्लाह को है।
التفاسير العربية:
مَتَٰعٞ قَلِيلٞ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ
(इस मिथ्यारोपन का) लाभ तो थोड़ा है और उन्हीं के लिए (परलोक में) दुःखदायी यातना है।
التفاسير العربية:
وَعَلَى ٱلَّذِينَ هَادُواْ حَرَّمۡنَا مَا
قَصَصۡنَا عَلَيۡكَ مِن قَبۡلُۖ وَمَا ظَلَمۡنَٰهُمۡ وَلَٰكِن كَانُوٓاْ
أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ
और उनपर, जो यहूदी हो गये, हमने
उसे ह़राम (अवैध) कर दिया, जिसका वर्णन हमने इस[1] से पहले आपसे कर दिया
है और हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर
रहे थे।
1. इस से संकेत सूरह अन्आम, आयतः26 की ओर है।
التفاسير العربية:
ثُمَّ إِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِينَ عَمِلُواْ
ٱلسُّوٓءَ بِجَهَٰلَةٖ ثُمَّ تَابُواْ مِنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ وَأَصۡلَحُوٓاْ
إِنَّ رَبَّكَ مِنۢ بَعۡدِهَا لَغَفُورٞ رَّحِيمٌ
फिर वास्तव में, आपका पालनहार
उन्हें, जो अज्ञानता के कारण बुराई कर बैठे, फिर उसके पश्चात् क्षमा याचना
कर ली और अपना सुधार कर लिया, वास्तव में, आपका पालनहार इसके पश्चात् अति
क्षमी, दयावान् है।
التفاسير العربية:
إِنَّ إِبۡرَٰهِيمَ كَانَ أُمَّةٗ قَانِتٗا
لِّلَّهِ حَنِيفٗا وَلَمۡ يَكُ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ
वास्तव में, इब्राहीम एक समुदाय[1] था, अल्लाह का आज्ञाकारी एकेश्वरवादी था और मिश्रणवादियों (मुश्रिकों) में से नहीं था।
1. अर्थात वह अकेला सम्पूर्ण समुदाय था। क्यों कि
उस के वंश से दो बड़ी उम्मतें बनीं: एक बनी इस्राईल, और दूसरी बनी इस्माईल
जो बाद में अरब कहलाये। इस का एक दूसरा अर्थ मुखिया भी होता है।
التفاسير العربية:
شَاكِرٗا لِّأَنۡعُمِهِۚ ٱجۡتَبَىٰهُ وَهَدَىٰهُ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ
उसके उपकारों को मानता था, उसने उसे चुन लिया और उसे सीधी राह दिखा दी।
التفاسير العربية:
وَءَاتَيۡنَٰهُ فِي ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٗۖ
وَإِنَّهُۥ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
और हमने उसे संसार में भलाई दी और वास्तव में वह परलोक में सदाचारियों में से होगा।
التفاسير العربية:
ثُمَّ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ أَنِ ٱتَّبِعۡ
مِلَّةَ إِبۡرَٰهِيمَ حَنِيفٗاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ
फिर हमने (हे नबी!) आपकी और वह़्यी की कि एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म का अनुसरण करो और वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
التفاسير العربية:
إِنَّمَا جُعِلَ ٱلسَّبۡتُ عَلَى ٱلَّذِينَ
ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِۚ وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡ يَوۡمَ
ٱلۡقِيَٰمَةِ فِيمَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ
सब्त[1] (शनिवार का दिन) तो
उन्हीं पर, निर्धारित किया गया, जिन्होंने उसमें विभेद किया। और वस्तुतः,
आपका पालनहार उनके बीच उसमें निर्णय कर देगा, जिसमें वे विभेद कर रहे थे।
1. अर्थात सब्त का सम्मान जैसे इस्लाम में नहीं
है, इसी प्रकार इब्राहीम अलैहिस्स्लाम के धर्म में भी नहीं है। यह तो केवल
उन के लिये निर्धारित किया गया जिन्हों ने विभेद कर के जुमुआ के दिन की जगह
सब्त का दिन निर्धारित कर लिया। तो अल्लाह ने उन के लिये उसी का सम्मान
अनिवार्य कर दिया कि इस में शिकार न करो। (देखियेः सूरहा आराफ, आयतः163)
التفاسير العربية:
ٱدۡعُ إِلَىٰ سَبِيلِ رَبِّكَ بِٱلۡحِكۡمَةِ
وَٱلۡمَوۡعِظَةِ ٱلۡحَسَنَةِۖ وَجَٰدِلۡهُم بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُۚ إِنَّ
رَبَّكَ هُوَ أَعۡلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِۦ وَهُوَ أَعۡلَمُ
بِٱلۡمُهۡتَدِينَ
(हे नबी!) आप उन्हें अपने
पालनहार की राह (इस्लाम) की ओर तत्वदर्शिता तथा सदुपदेश के साथ बुलाएँ और
उनसे ऐसे अंदाज़ में शास्त्रार्थ करें, जो उत्तम हो। वास्तव में, अल्लाह
उसे अधिक जानता है, जो उसकी राह से विचलित हो गया और वही सुपथों को भी अधिक
जानता है।
التفاسير العربية:
وَإِنۡ عَاقَبۡتُمۡ فَعَاقِبُواْ بِمِثۡلِ مَا
عُوقِبۡتُم بِهِۦۖ وَلَئِن صَبَرۡتُمۡ لَهُوَ خَيۡرٞ لِّلصَّـٰبِرِينَ
और यदि तुम लोग बदला लो, तो उतना ही लो, जितना तुम्हें सताया गया हो और यदि सहन कर जाओ, तो सहनशीलों के लिए यही उत्त्म है।
التفاسير العربية:
وَٱصۡبِرۡ وَمَا صَبۡرُكَ إِلَّا بِٱللَّهِۚ وَلَا
تَحۡزَنۡ عَلَيۡهِمۡ وَلَا تَكُ فِي ضَيۡقٖ مِّمَّا يَمۡكُرُونَ
और (हे नबी!) आप सहन करें और
आपका सहन करना अल्लाह ही की सहायता से है और उनके (दुर्व्यवहार) पर शोक न
करें और न उनके षड्यंत्र से तनिक भी संकुचित हों।
التفاسير العربية:
إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَواْ وَّٱلَّذِينَ هُم مُّحۡسِنُونَ
वास्तव में, अल्लाह उन लोगों के साथ है, जो सदाचारी हैं और जो उपकार करने वाले हैं।
التفاسير العربية:
ترجمة معاني سورة:
النحل
ترجمة معاني القرآن الكريم - الترجمة الهندية -
ترجمة معاني القرآن الكريم إلى اللغة الهندية، ترجمها عزيز الحق العمري.
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